हर मानव का जीवन मानवीय गुणों एवं भावों से युक्त हो

संसार में इन्सान का जीवन तभी सफल माना जायेगा जब वो मानवीय गुणों एवं भावों से युक्त हो और जीवन जीने की यह कला तभी संभव है जब ब्रह्मज्ञान प्राप्त करता है तभी जीवन में भक्ति आती है। ये मानवीय गुण कुछ पलों के लिए नहीं बल्कि हमेशा ही मानव के चरित्र को सुन्दर बनाए रखते हैं। ये विचार सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने रोहिणी के रजत जयंती पार्क में विशाल ‘निरंकारी सन्त समागम में फरमाते हुए यक्त किए। उन्होंने फरमाया कि इन मानवीय गुणों को अपना कर इन्सान का जीवन संसार के लिए वरदान बन जाता है। उनका जीवन फूलों की तरह सुन्दर और महकदार बन जाता है। इसी भाव से युक्त इन्सान के जीवन में व्यवहार की सुन्दरता भी हो और गुणों की खुशबू भी फैलती रहे।

उन्होंने फरमाया कि हम सभी एक परमात्मा की ही संतान है इसलिए किसी को कभी भी काँटों की चुभन नहीं देनी बल्कि को मल पंखुडिय़ों की तरह व्यवहार करना है। सभी से मिलकर एकत्व, अपनेपन का भाव ही होना चाहिए, । सतगुरु माता जी ने दीपक का उदाहरण देते हुए फरमाया कि दीपक अलग-अलग आकार व रंग के हो सकते हैं मगर उनकी ज्योति एक ही होती है, जो मार्ग प्रशस्त करती है। इसी तरह इंसानों की आकृति और संस्कृति तो अलग-अलग है परन्तु सब में इसी एक परमात्मा की ही ज्योति है। यही ज्योति ही ब्रह्मज्ञान है जो जीवन का मार्ग आसान करती है। सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने सभी को कड़वाहट, नकारत्मकता वाली नहीं बल्कि मिठास वाली, सकारात्मक सोच को अपनाकर संतो भक्तों के मार्ग को अपनाने और जीवन जीने की प्रेरणा दी। उन्होने कहा भक्ति भरे जीवन के हर कर्म से मानवता का भला हो।

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