सरकार और विरोधी पार्टियों के बीच फंसा अन्नदाता किसान

कल्याण केसरी न्यूज़ अमृतसर,23 सितम्बर : पिछले कुछ दिनों से केंद्र सरकार और विरोधी पक्षों में खेती आरडीनैसों को ले कर एक जंग छिड़ी हुई है। सरकार कह रही है कि वह ठीक है और विरोधी पक्ष कह रहा हैं कि सरकार ने जो किया है वह गलत है। इस मामले में अन्नदाता किसान बीच में फंसा हुआ दिखाई दे रहा है। यह लग रहा है कि सरकार और विरोधी पक्षों ने किसानों को खिलौना बना लिया है जिसकी मर्जी हो वह खेल लेते है। वास्तविकता में किसान हितैषी होने के दावे करने वाली पार्टियों के लिए किसान एक वोट बैंक और चर्चा के विषय से सिवाए ओर कुछ नहीं है क्योंकि पिछले कुछ समय दौरान या पहले कजरे के चलते फंदा लगाकर अपनी जान देने वाले किसानों के बारे कोई पक्का हल नहीं किया जा रहा और नई नई बातें पर बिल ला कर किसानों की चिंताएं में ओर बढ़ौतरी की जा रही है। अन्नदाता के नाम के साथ जाना जाने वाला किसान तो धरनों और सबसिडियां लेने तक सीमित रह गया है। किसानों को मिलती सबसिडियों के नाम पर और गाँवों में बनीं सोसायटियों में करोड़ों के घुटालों ने पहले ही बड़ा दुखी किया हुआ था ऊपर से केंद्र सरकार और राज्य सरकारें किसानों को सुख की साँस दिलाने की बजाय उन को ओर ही सोचों में डालने में लगी हुई है। कोरोना के चलते और डीजल और पैट्रोल की कीमतों के वृद्धि ने किसानों के ज़ख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया है। किसानों के ज़ख्मों पर कोई मरहम लगाने के बजाय उन की भावनायों के साथ गंदी राजनीति का खेल खेला जा रहा है, जिस को अच्छी बात नहीं कहा जा सकता। सारी दुनिया इस बात को अच्छी तरह जानती है कि किसानों को फसलों का असली मूल्य नहीं मिलता जिसके चलते किसानों को आढ़तिया और बैंकों से पैसे पकड़ कर अगली फसलों का बीज खरीद के बीज बीजना पड़ता है। किसान को गन्ना मिलों में फसल पहुंचा कर किसानों को मिलों वालों के मुंह की तरफ देखना पड़ता है, आए दिन किसानों के गन्ना के बकाए पैसों को ले कर पूरे पंजाब में कहीं न कहीं दिए जा रहे रोष धरने और भूख हड़तालें इस की गवाही देते हैं। एक बात से देश की केंद्र सरकार और राज्य सरकारें अच्छी तरह के साथ जानकार हैं कि जिस तरह देश की रक्षा सरहद पर फौज करती है इसी तरह सभी देश तक अन्न पहुँचाने वाला किसान ही है, यदि किसान खेतों के फसलों को बीजना छोड़ दे तो आने वाला समय कितना खतरनाक हो सकता है, इसका अंदाजा आम ही लगाया जा सकता है। किसान किसी के पास से कुछ मांगने नहीं जाता, यदि उसको उसकी फसल का मूल्य सही मिले और सरकार की तरफ से दीं जा रही सुविधाएं किसानों का सही तरीके से पहुंचे। न ही किसान को फंदे लगाने की कोई जरूरत है। सरकारों की तरफ से दी जाने वाली सुविधाओं पर राजनीति इतनी हावी हो जाती है कि मौके की सरकारों के पार्टी वर्कर और नेताओं के अपने ही वह सुविधाएं किसानों तक पहुँचने ही नहीं देते। विरोधी पक्ष सिर्फ इस बात को ब्यानबाजी तक ही सीमित रख कर अपनी राजनीति को चमकाने में लग जाती है फिर सरकार बदल जाती है फिर पलट कर वही कहानी दोहारी जाती है परन्तु किरदार बदल जाते हैं । विरोधी पक्ष सरकार में आ जाती है और सरकार विरोधी पक्ष में। फर्क कोई नहीं पड़ता। किसान फिर खाली का खाली। इस लिए इस समय केंद्र सरकार, राज्य सरकारें और विरोधी पक्ष को किसान और किसानी को अपनी राजनीति का हिस्सा न बना कर उसके बारे में सही तरीके साथ सोच को अपना कर अन्नदाता किसान को शांति के साथ जीने के साधन मुहैया करवाएं।

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