कल्याण केसरी न्यूज़,जलंधर 7 अक्तूबर: ज़िला प्रशासन के पराली को आग लगाने के कारण पैदा होने वाली ज़हरीली गैसों से वातावरण और मानवीय स्वास्थ्य को बचाने के लिए चलाए जा रहे जागरूकता अभियान से ज़िले के गाँव जुड़ रहे है, और आज छह अन्य गाँवों की पंचायतों ने पराली जलाने के रुझान को रोकने के लिए ज़िला प्रशासन के कंधा से कंधा जोड़ कर काम करने की पहल करते हुए अपने गाँवों में पराली जलाने के ख़िलाफ़ मत पास किये।मत में लिखा गया है कि धान की कटाई सिर्फ़ सुपर एसएमएस लैस कम्बाईन के साथ ही की जायेगी और यदि कोई आदेशों का उल्लंघन करता पाया गया तो तुरंत पुलिस और प्रशासन को सूचित किया जायेगा। आज गाँव गग्ग धगाड़ा, गाँव चौलांग, गाँव इसपुर, गाँव भोजोवाल, गाँव रायपुर फराला और कोट खुर्द में पराली जलाने के ख़िलाफ़ मत पास किये गए।
गाँव गग्ग धगाड़ा की सरपंच बेअंत कौर ने कहा कि इस कोरोना वायरस महामारी के दौर में पराली न जलाने से जहाँ साँस की समस्याओँ से काफ़ी हद तक बचा जा सकता है वहीं खेतों की मिट्टी की उपजाऊ शक्ति में भी सुधार होगा। सरपंच बेअंत कौर ने बताया कि उनके गाँव में धान का क्षेत्रफल 800 एकड़ है और गाँव में कुल 32 किसान हैं, जिन्होंने इस साल पराली को आग न लाने का फ़ैसला लिया है। उन्होनें कहा कि पिछले साल उनके गाँव नजदीक क्षेत्र में पराली जलाने की घटनाओं की ख़बर मिली थी परन्तु इस साल वह अपने ही नहीं बल्कि आस -आसपास के गाँवों को भी पराली न जलाने केल लिए जागरूक करेंगे। गाँव चुलांग के सरपंच गुरमीत सिंह ने बताया कि पराली न जलाने संबंधी गाँव के गुरूघरें की तरफ से अनाऊंसमैंट की जा रही है और लगातार यतनों से 30 किसानों ने अपनी 250 एकड़ धान की पराली को न साड़न का फ़ैसला किया है।सरपंच ने बताया कि उनके गाँव में कस्टम हायरिंग सैंटर है और गाँव के लोग सहकारी सभा कंगनीवाल से मशीनें ले सकते हैं। उन्होनें बताया कि सुपर एसएमएस हारवैस्टर कम्बाईनों का प्रयोग करने के बाद किसान इन -सीटू योजना के अंतर्गत मशीनों के द्वारा 50 एकड़ में आलू और 200 एकड़ में गेहूँ की बिजाई करेंगे।
ग्राम पंचायत इसपुर ने भी खेतों में ही पराली का सभ्य प्रबंधन करने का फ़ैसला किया है। इस बारे में जानकारी देते सरपंच गुरविन्दर सिंह ने बताया कि इस साल पराली को जलाए बिना 150 एकड़ गेहूँ की बिजाई की जायेगी।इसी तरह गाँव भोजोवाल के सरपंच गरीबदास ने कहा कि धान की पराली को आग लगाने से न सिर्फ़ वातावरण प्रदूषित हो रहा है बल्कि मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को भी नुक्सान पहुँच रहा है। गाँव निवासी नरिन्दर सिंह, सन्दीप सिंह और बलबीर सिंह ने कहा कि वह अपनी धान की पराली को पशुओं के चारें के तौर पर इस्तेमाल करेंगे।डिप्टी कमिशनर घनश्याम थोरी ने कहा कि पराली जलाने हानिकारक गैसें पैदा होती हैं, जिससे साँस की समस्याएँ बढ़ सकती है और कोविड प्रभावित मरीज़ों की हालत ख़राब हो सकती है। उन्होनें बताया कि धान की पराली को जलाने से 70,000 एम.जी. प्रदूषण कण पैदा होते है, जो मानवीय स्वास्थ्य के लिए नुक्सानदायक है और मिट्टी के 17 पौष्टिक तत्वों सहित कई अन्य सूक्ष्म पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं। इस लिए पंचायतों का मुख्य फ़र्ज़ है कि वह अपने गाँवों में पराली जलाने से रोकना यकीनी बनाए। डिप्टी कमिशनर ने पंचायतों से अपील की कि वह किसानों की तरफ से फसलों के अवशेष के प्रबंधन के लिए नवीनतम तकनीक के साथ लैस प्रभावशाली ढंग अपनाए और अपने गाँवों में पराली जलाने के केस जीरो दर्ज किये जाने को यकीनी बनाए।मुख्य कृषि अधिकारी डा. सुरिन्दर सिंह ने कहा कि कृषि और किसान भलाई विभाग की तरफ से किसानों को धान की पराली जलाने ख़िलाफ़ जागरूक किया जा रहा है और खेतों में पराली प्रबंधन के लिए के लिए हाई -टैक मशीनरी भी उपलब्ध करवाई जा रही है। उन्होनें कहा कि विभाग जागरूकता अभियान में प्रगतीशील किसानों को प्रमुखता के साथ पेश कर रहा है जिससे दूसरे किसान भी पराली के सभ्यक प्रबंधन के लिए तकनीक को अपना सकें।