कल्याण केसरी न्यूज़ जालंधर, 13 अक्तूबर: धान की पराली का प्रबंधन न सिर्फ़ पराली जलाने की समस्या में अहम रोल निभा रहा है बल्कि पिछले कुछ सालों से खेतों में पराली का निपटारा करके किसान अधिक लाभ कमा रहे है।जिन किसानों ने खेतों में ही पराली का प्रबंधन किया, वह जहां खाद पर होने वाले ख़र्च कम कर पैसों की बचत कर रहे हैं वहीं उनके खेतों की मिट्टी की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है।गोल गाँव के किसान अमरजीत सिंह ने बताया कि वह 2012 से इन-सीटू तकनीक के द्वारा पराली का प्रबंधन कर रहे है। उसने कहा वह खेत में 50 प्रतिशत कम डीएपी और युरिया का प्रयोग कर रहे हैं और मिट्टी की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है।उन्होंने बताया कि उनकी तरफ से सुपर एसएमएस का प्रयोग किया जा रहा है, जिसके बाद 38 एकड़ में ज़ीरो ड्रिल के साथ गेहूं की बिजाई के लिए मलचर और एमबी पलोय का प्रयोग की जाएगा। किसान ने बताया कि फ़सल की पैदावार में 1 से 1.5 क्विंटल प्रति एकड़ तक की बढ़ोतरी हुई है और बरसाती पानी ठहरने की कोई समस्या नहीं रही ।
गाँव काला संघिया के किसान दविन्दर सिंह धालीवाल 2015 से धान की पराली प्रबंधन मशीनों के प्रयोग से कर रहे हैं और 50 एकड़ गेहूँ और 60 एकड़ आलू की बिजाई कर रहे हैं।फ़सलों के अवशेषों के प्रबंधन के फ़ायदों बारे अपने अनुभव सांझे करते हुए बताया कि उसके खेत में मिट्टी में कठोरता, मिट्टी की उपजाऊ शक्ति में सुधार और गेहूँ की फ़सल साथ-साथ आलू की पैदावार में भी काफ़ी इजाफा हुआ है और खादों की लागत में भी कमी आई है।इसी तरह किसान सुखविन्दर सिंह और गाँव उधोपुर के तरलोचन सिंह ने कहा धान की पराली उपजाऊ शक्ति का एक शानदार स्रोत बन गई है।मुख्य कृषि अधिकारी डा. सुरिन्दर सिंह ने कहा कि यदि सभी किसान जालंधर में इन तकनीकों को अपना लें, जोकि 4 लाख एकड़ क्षेत्रफल है, तो वह 80 करोड़ रुपए की बचत कर सकते हैं, जो वह पौष्टिक तत्वों जैसे नाईट्रोजन, फास्फोरस और पोटाशियम खरीद पर ख़र्च कर देते हैं।उन्होनें कहा कि धान की पराली का प्रबंधन 13.75 किलो नाईट्रोजन, 6.25 किलो फास्फोरस और 62.5 किलो पोटाशियम को जमीन में शामिल करेगा। डा. सिंह ने कहा कि अवशेष मिट्टी को हवा और पानी के कटाव से बचाने में मदद करती है, मिट्टी को ठंडा रखते हैं जिससे बेशकीमती पानी को संभाला जा सके और पौष्टिक तत्वों के बचाव में भी सहायता मिल सके।