मुक्तिपर्व-आत्मिक स्वतंत्रता का पर्व

कल्याण केसरी न्यूज़ होशियारपुर ,14अगस्त,2020 : संत निरंकारी मिशन प्रतिवर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाने के साथ साथ मुक्ति पर्व दिवस भी मनाता हैएक तरफ सदियों की पराधीनता से मुक्त कराने वाले भारतीयस्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हुए उन्हें नमन किया जाता है,तो दूसरी तरफ जनजन की आत्मा की मुक्ति का मार्गप्रशस्त करने वाली दिव्य विभूतियाँ जैसे शहनशाह बाबा अवतार सिंह जी, जगतमाताबुद्धवन्ती जी, निरंकारी राजमाता कुलवंत कौर जी, पूज्य माता सविंदर हरदेव जी तथा अनेक ऐसे भक्तों को ‘मुक्तिपर्व’के रुप में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए उनके जीवन से प्रेरणा प्राप्त की जाती है।
पिछले अनेक वर्षांे से मिशन के द्वारा 15 अगस्त के दिन मुक्ति पर्व संत समागमों का आयोजन होता आया है।इस दिन देश की स्वतंत्रता की खुशी के साथ-साथ आत्मिक स्वतंत्रता से प्राप्त होने वाले आनंद को भीसम्मिलित कर मुक्ति पर्व मनाया जाता है।मिशन का मानना है कि जहाँ राजनीतिक स्वतंत्रता;सामाजिक तथा आर्थिक उन्नति के लिए अनिवार्य हैं वहीं आत्मिक स्वतंत्रता भी शांति और शाश्वत आनंद के लिएआवश्यक है।अज्ञानता के कारण मानवता केवल देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में जाति-पाँति, ऊँच-नीच, भाषा-प्रान्त, सभ्यता-संस्कृति, वर्ण-वंश जैसे भेदभावांे की दीवारों में जकड़ी हुई है।इन दीवारों के रहते हुए आत्मिकउन्नति तो दूर, भौतिक विकास में भी बाधायें आ जाती हैं।मिशन का मानना है कि आध्यात्मिक जागरूकता के माध्यम से इन सभी समस्याओं को दूर किया जा सकता है जब हमारे अंदर आध्यात्मिक जागरूकताका समावेश हो जाता है तब मन के विकारों से मुक्ति का मार्ग मिल जाता है।सभी प्रयत्नशील हो कर एक-दूसरे से प्रेम, नम्रता तथा सद्भाव का व्यवहार करने लग जाते हैं।आरंभ में यह समागम शहनशाह बाबा अवतार सिंह जी की धर्मपत्नी जगतमाता बुद्धवन्ती जी को समर्पि तथा, जो 15 अगस्त, 1964 को अपने इस नश्वर शरीर को त्याग कर निरंकार में विलीन हो गई।उन्हीं की यादमें इस दिन को ‘जगतमाता दिवस’ के रुप में मनाया जाने लगा। जगतमाता बुद्धवंती जी सेवा की जीवन्त मूर्ति थीं।उन्होंने सदैव ही निःस्वार्थ भाव से मिशन की सेवा की और स्वयं को पूर्ण रूप से जनकल्याण के लिएसमर्पित किया।शहनशाह बाबा अवतार सिंह जी ने 17 सितम्बर, 1969 को जब अपने इस नश्वर शरीर को त्यागा,तब यह दिन ‘शहनशाह-जगतमाता दिवस ’कहलाने लगा। ब्रह्मज्ञान प्रदान करने की विधि, पांच प्रण तथा मिशनकी विचारधारा को पूर्ण रुप देने का श्रेय शहनशाह बाबा अवतार सिंह जी को जाता है।बाबा गुरबचन सिंह जी, जो मिशन के तीसरे गुरु थे उन्हों ने इस दिन को ‘मुक्तिपर्व’ का नाम तब दिया जब संत निरंकारी मण्डल के प्रथम प्रधान लाभ सिंह जी ने 15अगस्त, 1979 को अपने इस नश्वर शरीर कोत्यागा। इसी के साथ ही उन सभी भक्तों को भी याद किया जाने लगा जिन्होंने ब्रह्मज्ञान प्राप्त करके इसे जन-जन तक पहुँचाने के लिए जीवन पर्यन्त अपना योगदान दिया।बाबा गुरबचन सिंह जी की धर्मपत्नी राजमाता कुलवंत कौर जी ने अपने कर्म और विश्वास से इस मिशन के सन्देश का बरसों-बरस प्रचार किया।उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन ही मिशन की सेवा में अर्पण कर दिया।17वर्षों तक बाबा गुरबचन सिंह जी के साथ तथा 34 वर्षों तक बाबा हरदेव सिंह जी के साथ निरंतर अपनी सेवाएं निभाती रहीं। 29 अगस्त, 2014 को राजमाता जी ने अपने इस नश्वर शरीर का त्याग किया और निरंकारमें विलिन हो गयीं।उसके बाद से हर वर्ष मुक्ति पर्व दिवस पर उन्हें व उनके योगदान को याद किया जाता है।          बाबा हरदेव सिंह जी के ब्रह्मलीन होने के उपरान्त माता सविन्दर जी ने सद्गुरु रूप में निरंकारी मिशन की बागड़ोर वर्ष 2016 में संभाली।उसके पूर्व 36 वर्षों तक उन्होंने निरंतर बाबा हरदेव सिंह जी के साथ कदम सेकदम मिलाकर मानवता के कल्याण के लिए सहयोग दिया। वह प्यार और करुणा की जीवंत उदाहरण थीं। शरीर रूप से अस्वस्थ होने पर भी 2 वर्षों के अल्पकाल में सद्गुरु माता सविन्दर हरदेव जी ने मानवता केलिए स्वयं को समर्पित किया। इसलिए  उन्हें Strength personified  के अलंकार से सुशोभित किया जाता है। पूज्य माता सविन्दर हरदेव जी ने 5अगस्त, 2018 को अपने नश्वर शरीर का त्याग किया और निरंकारमें विलिन हो गयीं। उन्हें भी मिशन के लाखों अनुयाइयों द्वारा मुक्ति पर्व पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए जा रहे हैं।

माता सविन्दर जी ने अपने नश्वर शरीर का त्याग करने से कुछ दिन पूर्व दि.17 जुलाई, 2018 के दिन सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज को मिशन की बागडोर सौंपी जो दिन-रात मानवमात्र की सेवा एवं समाजकल्याण के कार्यों में स्वयं को समर्पित किए हुए है।

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