कल्याण केसरी न्यूज़ ,26 जनवरी : सिक्ख पंथ में अनेकों ऐसीं जत्थेबंदियाँ हैं जिन्होंने सिक्खी की चढ़ती कला के लिए समय समय अपना योगदान पाया। इन में से अनेकों बलियों सदका होंद में आई श्रोमनी गुरुद्वारा प्रबंधक समिति अपनी, कुछ प्रशास्निक ख़ामियाँ के बावजूद वीं सदी का एक महान हासिल होने प्रति इन्कार नहीं किया जा सकता। यह केवल गुरूधामों की सेवा संभाल तक ही सीमित नहीं बल्कि विशव स्तर पर फैली सिक्ख कौम के बाशिन्द्यों के लिए गुरू आशे अनुसार धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक सीध प्रदान करन के इलावा उन दीया ज़रूरतों और समस्याएँ को हल करन के लिए जब जहद करती नज़र आती है। इसी करके यह सिक्खों की पार्लियामेंट के तौर पर स्वीकृत जाती है।
गुरू काल के बाद वी सदी सिक्ख कौम के लिए अपनी होंद बचाने के इलावा अपनी स्व पहचान और राजसी अहाता को पकेर्यें करते इस को विस्तार देने के लिए संघरश का दौर रहा। दिली, जमरौद, लेह लद्दाख़ आदि को फहत करने के दौरान जब भी मौका मिला या बस चला सिक्खों ने गुरूधामों की उसारी और इस की महत्ता को बढ़ाने की तरफ विशेश ध्यान दिया, जो कि गुरूधामों प्रति सिक्खों की श्रद्धा सत्कार और प्यार का लिखायक रहा। सिक्ख शासन काल दौरान सिक्ख शासकें को गुरूधामों की अंदरूनी प्रबंध में ख़ास दख़ल अन्दाज़ी करन की ज़रूरत नहीं पड़ी परन्तु सेरे पंजाब की रुखसती उपरांत अंग्रेज़ हकूमत की तरफ से महंतों और पुजारियों को दी गई राजसी सह के साथ गुरूधामों के प्रबंध में भी बिगाड़ पडनी की शुरूआत हो गई थी, फिर भी सिक्खों की गुरूधामों प्रति श्रद्धा और अकीदे ने अंग्रेज़ हकूमत को यह अभास ज़रूर करा दिया कि गुरूधाम सिक्खों के लिए केवल पूजा पाठ या कर्मकांड के लिए बना कोई मंदिर नहीं, बल्कि यह सिक्खों के लिए धार्मिक आस्था, सामाजिक और राजनैतिक पहलूयों पर विचार करन के लिए संगती रूप में जुड़ बैठने का स्थान है, जहाँ से सिक्ख जत्थेबन्दक स्वरूप और राजसी सकती ग्रहण करते हैं। अंग्रेज़ हकूमत ने गुरूधामों खासकर श्री दरबार साहब और श्री अकाल तख़्त साहब की तरफ अपना ध्यान विशेश करकेंद्रित किया और इन के प्रबंध के लिए एक समिति और प्रतिनिधि नियुक्त किया गया। महंत और पुजारी किसान का सारा सामान गुरू क्या संपत्ति को अपनी मल्कीयत समझने लगे। यह दौर में संकल्प विरोधी व्यवहार शिखरों पर था और सर्व सांझेदारी के असथानें पर छूतछात भारू रहा था। धार्मिक निज़ाम की बिगड़ी हालत देख सिक्ख हिरद्यें को ठेस पहुँची।कौम में आई फिक्रमंदी और जागृति कारण सिंह सभा लहर, चीफ़ खालसा दीवान, गुरुद्वारा सुधार लहर, श्रोमनी समिति और अकाली दल ने जन्म लिया।12 अक्तूबर 1920 को संगती रूप में श्री दरबार साहब और श्री अकाल तख़्त साहब में अछूत समझी जातीं जातियों में से अमृतपान करन वाले सिंहों की तरफ से प्रसाद भेंट करन की मनाही के घटनाकर्मों और उस वक्त पुजारियों की तरफ से खाली छोड़ कर गए श्री अकाल तख़्त साहब की सेवा संभाल के लिए सिक्खों की तरफ से बनाई गई 17 सदस्यता समिति और फिर प्रसासन के साथ मीटिंग उपरांत होने में आई 9सदस्यता समिति को श्रोमनी समिति के साकार होने का पहला कदम होने का मान रहा।इन के बाद कौम के नेताओं ने 15 नवंबर 1920 को हरेक खालसा जलसा बुला कर प्रथम कार्य की तरफ से श्री दरबार साहब और गुरुद्वारों के प्रबंध के लिए 150 सदस्यता समिति की चयन की, इस में सरकार की तरफ से बनाई गई 36 सदस्यता समिति को भी शामिल करते समूह सदस्यों की संख्या 175 की गई। उक्त चयन उपरांत अंग्रेज़ सरकार सिक्खों के साथ फिर नाराज़ हो गई। जिस कारण महंतों से गुरूधामों को आज़ाद कराने के लिए गुरुद्वारा सुधार लहर की आरंभता हुई। इसी दौरान सिक्ख नेताओं ने गुरुद्वारों को पंथक प्रबंध नीचे लाने के लिए खोद अस्थिर संघरश किया। मोर्चे लगाऐ, शौर्यगाथा इस्तेमाल करे, डांगों बरसें, गोलियाँ चलीं, 500 से अधिक शहीदियें, हज़ारों अपंग, तीस हज़ार गिरफ़्तारियाँ और लाखों आ नुक्सान उठाउना पड़ा। इस तरह ज़बरदस्त जब जहद के कारण 1नवंबर 1925 को ’’ गुरुद्वारा एक्ट ’’ बन कर लागू किया गया, जिस के अंतर्गत गुरुद्वारों का प्रबंध चुने हुए नुमायंदों को सौंपा गया।
गुरूधामों प्रति चेतना लहर गुरुद्वारा रकाब गंज की गिराऐ गए दीवार की फिर उसारी के लिए लगाऐ गए मोर्चो के साथ हो चुकी थी, फिर 27 सितम्बर 1920 को गुरुद्वारा चुमाला साहब, पातिशाही छटी, लाहौर पर काबिज़ ग्रंथी की मनमती घटनाकर्मों को रुकावट डाल डालते गुरुद्वारा साहब की सेवा संभाल कौम ने अपने हाथ में लिया, जो कि गुरुद्वारा सुधार लहर की पहली कामयाबी थी। इसी दौरान गुरुद्वारा बाबो की बेर, सर्दी कोट, गुरुद्वारा पंजा साहब आज़ाद कराए गए। गुरुद्वारा तरन तार साहब की सेवा संभाल को ले कर बातचीत करन पहुँचे सिंहों पर महंतों की तरफ से साज़िश के अंतर्गत किये गए हमले दौरान भाई हज़ारा सिंह अलादीन पुर और भाई हुक्म सिंह बजायेगा कोट की शहादतों के साथ गुरुद्वारा सुधार लहर में पहली शहीदियों का योगदान पड़ा। जिस जत्थो का नेतृत्व जत्थेदार तेजा सिंह के पास था।
उस वक्त श्री दरबार साहब अमृतसर, श्री अकाल तख़्त साहब, बाबा अटल राय जी और श्री दरबार साहब तरन तार साहब के प्रबंध के लिए पुजारी चाहे अलग अलग थे परन्तु प्रतिनिधि एक ही था। तरन तार में किसान का सारा सामान धर्म, स्रम और लोग लाज से उलट काम करने और समझाने वालों को मारने की धमकें देने बारे समझना मिस्टर किंग को सब ख़बर होने के बावजूद वह महंतों को सह दे रहा थी। महंतों की कुरीतियों बारे भाई मोहन सिंह वैद्य ने मिस्टर किंग को खबरदार भी किया।
इसी दौरान अक्सर ही प्रमुख सिक्ख श्री अकाल तख़्त साहब में गुरुद्वारों के प्रबंध में सुधार लाने बारे विचारों किया करते थे। कुदरती ही दरबार साहब, तरन तार के पुजारियों की मनमती कार्यवाहियों का जैसे छिड़ पड़ा। जिस में मेरठ से आए निहंग को पुजारियों की तरफ से मारने पीटने, भाई लछमण सिंह धारोवाल के साथ गई स्कूली बच्चियाँ को कीर्तन करन की आज्ञा न देने और श्री दरबार साहब में अमृत समय आशा की वार का कीर्तन करन आए स्थानिक ‘सेवक जत्थे ’ को पुजारियों की तरफ से न केवल कीर्तन से रोका बल्कि उन मार पीट तक करन के इलावा तरन तार से आई एक बीबी की तरफ से वहाँ के महंतों की करतूतों और प्याराे के साथ की जा रही अशलील और इखलाकहीण ज्यादतियों की बातें चल ने संगत में रोश पैदा करदिता। माँ की दासतां सुन कर सब के दिल विन्न्हे गए। सभी इस नतीजे पर पहुँचे कि पुजारियों को सीधे रास्ता पहनने के लिए तुरंत उपरालो की ज़रूरत है। फ़ैसला हुआ कि तरन तार जा कर पुजारियों को समझाया जाये।
25 जनवरी 1921 को जत्थेदार तेजा सिंह बेवकूफ़ का नेतृत्व में तीस कु सिंह सुबह की गाड़ी तरन तार पहुँच गए। दरबार साहब पहुँचे तो कीर्तन हो रहा था। वह गुरू ग्रंथ साहब को माथा टेक कर कीर्तन श्रवण करन लगे। पुजारी अपनी, करतूतों कारण अंदर से डरे हुए थे। अकालियों ने पिछले कुछ समय में कुछ गुरूधामों के प्रबंध अपने हाथों में लिया था, इस लिए पुजारियों ने मान लिया कि अकाली इस मनोरथ के लिए ही आए हैं। यह सोच कर कुछ जोशीले पुजारी, अकालियों के साथ खहबड़न लगे। फ़साद से बचाने के लिए भाई मोहन सिंह वैद्य और ओर स्थानिक आदरणिय ने पुजारियों को समझाया कि अकाली उन को गुरूद्वारे में से बेदख़ल करन नहीं आए, वह प्रबंध में सुधार चाहते हैं। फलस्वरूप बुज़ुर्ग पुजारियों ने गड़बड़ ख़त्म करवा दी और सहमति दी कि वह अकालियों की बात श्रवण के लिए तैयार हैं। विचार अदला बदले ली पुजारियों ने नेहाल सिंह, गुरबख़श सिंह, गुरदित्त सिंह, सेवा सिंह आदि 6व्यक्ति और अकालियों और स्थानिक सिक्खों की तरफ से जत्थे: तेजा सिंह बेवकूफ़, जनवा: बलवंत सिंह कुल, स: दान सिंह वछोआ, या करतार सिंह झबर और हकीम बहादर सिंह आदि नुमायंदों की समिति बना दी गई और चार बजे शरणार्थी मीटिंग करन का फ़ैसला हुहैं। मीटिंग शुरू हुई तो अकाली नेताओं का मत था कि अंग्रेज़ सरकार द्वारा प्रचलित प्रबंध अनुसार तरन तार गुरूद्वारे का प्रबंध भी दरबार साहब अमृतसर का प्रबंध देखने वाले प्रतिनिधि के हाथ था, इस लिए 12 अक्तूबर की घटना के बाद तरन तार गुरुद्वारा श्रोमनी गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के अधिकार नीचे आ गया है। इस की लौ में उन्हों ने पुजारियों को कहा कि उन को गुरू घर में पुजारियों की तरफ से सेवा किये जाने पर कोई ऐतराज़ नहीं परन्तु पुजारियों को पंथ की शरतें मान लेनी चाहीऐ हैं। जैसे कि गुरूद्वारे का प्रबंध श्रोमनी गुरुद्वारा प्रबंधक समिति, अमृतसर की हिदायतें मुताबिक चलाया जायेगा। 2. प्रबंध की निगरानी के लिए श्रोमनी समिति की तरफ से स्थानिक समिति बनाई जाऐगी। 3. वर्तमान कमीों को दूर किया जाये जिससे श्रोमनी समिति को कोई सिकायत न पहुँचे। 4. जो पुजारियों ने संकल्प मर्यादा का उल्लंघन की है, वह संगत के हुक्म अनुसार तनख़्वाह लगवाउण और 5. केवल अमृतधारी और संकल्प रहित वाले ग्रंथियों को सेवा जारी रखने की आज्ञा होगी। लंबे बहस के बाद समझौता तय हो गया। पुजारियों के प्रतिनिधि यह कह कर बाहर चले गए कि वह बाकी पुजारियों के साथ कुछ सलाह करना चाहते हैं। पुजारियों को लाहौर के कमिशनर जो कभी अमृतसर का डिप्टी कमिशनर होने पर पुजारियों का स्नेही था, की सह प्राप्त था। पुजारी अंदर से -अन्दरी अकालियों को गुरूद्वारे में से निकाल देने के लिए तैयारी के लिए समय ले रहे थे। उस वक्त पुजारियों के हथियारबंद बंदे गुरदित्त सिंह के मकान और झंडा बंगा में सिक्खों पर हमला करन की तैयारियाँ कर रहे थे। उन के पास गोला बारूद भी था। दूसरे तरफ़ अकालियों के तरन तार आने की बात जैसे जैसे लोगों तक पहुँची, सिक्खों के जलसा की संख्या बढ़ती गई। रात के हमारे नौ सा बजे दो पुजारियों ने आ कर सिक्ख नेताओं को कहा कि पुजारियों को अकालियों की शरतें मंज़ूर हैं और वह सभी दरबार साहब के अंदर बैठे दस्तख़त करन के लिए लिखित इकरारनामो की इंतज़ार कर रहे हैं। सिक्ख नेताओं को महंतों की नीयत पर सक भी हुहैं। अकालियों ने भाई. मोहन सिंह वैद्य को समझौतो की कागज़ तैयार करन के लिए भेज दिया। भाई वेद ने गुरूद्वारे के बाहर ले जाए तहसीलदार, इंस्पेक्टर और ओर सरकारी आधिकारियों इस प्रति सूचना दे दी। कुझ सिंह इकरारनामे पर पुजारियों के दस्तख़त करवाने के लिए दरबार साहब अंदर गए, बाहर दीवान में उपस्थित संगत पर पुजारी गुरदित्त सिंह के मकान और बुंगों उपर से कई हाथ गोले फेंके गए जिस के साथ कई सिंह ज़ख़्मी हुए। दरबार साहब के अंदर जा कर श्री गुरु ग्रंथ साहब आगे माथा टेकण वाले स: बलवंत सिंह कूल्हा पर तलवार का बार हुआ तो उस की बाज़ू लगभग घूस गई। उस के साथ ही भाई हज़ारा सिंह अलादीन पुर के पेट में तलवार मारी गई और स: हुमक सिंह वचाऊ कोट सिर पर तवियों की मार के साथ गंभीर ज़ख़्मी हुहैं। भाई सरन सिंह, भाई गुरबख़श सिंह, भाई लाभ सिंह, भाई ईशर सिंह समेत दर्जन के लगभग ओर सिक्ख ज़ख़्मी हुए। यह सब कुछ पलों में ही घट गया। महंत के बंदे बत्तीयां गुल कर कर भाग पड़े। ज़ख़्मी सिक्खों ने जब बाहर आ कर घटना की जानकारी संगत को दी तो संगत अथाह गुस्से में आ गई, अंदर खोद ही खोद था। संगत ने ज़ख़्मियों को संभाला। रोश में आए नौजवानों को नेताओं ने सांत रखा। फिर भी वारदात करन के बाद भागे जा रहे कई पुजारी सिक्खों ने काबू कर लिए। 10 बजे पुलिस पहुँची और वाकया देखा। पुलिस ने शराबी पुजारी देखे। अगले दिन पुजारियों ने नकली परन्तु मामूली ज़ख़्मों वाले 13 ज़ख़्मी हस्पताल दाख़िल कराए जिससे बराबर का मुकदमा बनाया जा सके। साज़िश में पुलिस हिस्सेदार था। दोनों धड़े पर मुकदमा दर्ज हुहैं। इसी केस में अदालत ने 15 पुजारियों को 3-3साल कैद, 50 -50 हज़ार रुपए जुर्माना किया गया। इसी तरह 9अकालियों को एक – एक साल कैद और 50 -50 हज़ार जुर्माना। बाद में जज ने महंतों की कैद 9महीने और अकालियों की कैद 6महीने करदिती। इस केस में अकालियों ने सरकार के साथ सहयोग से इन्कार कर दिया। वर्ना महंतों पर दो कत्ल के लिए दफ़ा 302 लग्गनी था। 26 जनवरी 1921नूं यह पी ने दोनों धड़ो के साथ बात की। महंतों को गुरूद्वारे में जाने से रोक दिया गया। कुछ दिन बाद महंतों ने मुआफी माँग के लिए। गुरूद्वारे की सेवा संभाल संगत के हाथ आई। संगत ने दरबार साहब का फर्स पानी के साथ धोया और फिर अमृत समय पर आशा की वार का कीर्तन किया। इस तरह इस गुरूद्वारे का प्रबंध भी श्रोमनी समिति हाथ आ गया, गुरूद्वारे के प्रबंध के लिए स्थानिक समिति बनाई गई जिस में सूबेदार बलवंत सिंह कुल्ला को प्रधान की ज़िम्मेदारी सौंपी गई।
इसी दौरान हस्पताल में दाख़िल भाई हज़ारा सिंह गाँव अलादीन पुर ज़ख़्मों की ताब न बरदाश्त करता हुआ 27 जनवरी को दोपहर के बाद अकाल प्रस्थान कर गया। 28 जनवरी को भाई हज़ारा सिंह की देह जुलूस की सकल में लिजा कर उस का ससकार गुरू कर कुआँ पर किया गया। हज़ारों सिंहों की शमूलियत के साथ उस ज़माने में यह जुलूस सब से बड़ा जुलूस था। इसी दौरान हस्पताल में हौसले -इलाज एक ओर सिक्ख भाई हुक्म सिंह गाँव वसाऊ कोट 4फरवरी वाले दिन चढ़ाई कर गए। इस तरह यह तरन तार के शौर्यगाथा में दो सिंहों की शहीदियों के साथ गुरुद्वारा सुधार लहर में पहली शहीदियें के तौर पर दर्ज हुहैं। इन सिंहों की शहीदी और शौर्यगाथा तरन तार साहब की घटना की शताबदी मनायी जा रही है। श्रोमनी समिति की तरफ से शहीद बाबा हज़ारा सिंह अलादीन पुर के वारिस भाई अजैब सिंह अभ्यासी मैंबर धर्म प्रचार समिति और संगतें के सहयोग के साथ गुरुद्वारा सुधार लहर के इन पहली शहीदियों का योगदान डालने वालों की याद में 27 और 28 जनवरी को शहीदी यादगार गूह: शहीद बाबा हज़ारा सिंह जी और बाबा हुक्म सिंह जी, गाँव अलादीन पुर में संकल्प समागम कराए जा रहे हैं।
( पिरो: सरचांद सिंह)