कल्याण केसरी न्यूज़ अमृतसर ,8 फ़रवरी : गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर की ईओसी-पीडबल्यूडी और विश्वभाषा अकादमी,भारत के संयुक्त तत्वावधान में एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेब-संवाद’ विकलांग विमर्श:दशा और दिशा’ का आयोजन किया गया।दिव्यांगजनों के लिए यूनिवर्सिटी के नोडल अधिकारी,विश्व भाषा अकादमी,पंजाब के महासचिव व कार्यक्रम के संयोजक डॉ.सुनील कुमार ने कार्यक्रम की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जब हम 21 वीं सदी में पहुंच चुके हैं, तब भी विकलांगों की स्थिति में कुछ खास बदलाव नहीं हुए हैं।आज विकलांगों के प्रति समाज के दृष्टिकोण को सकारात्मक बनाने की आवश्यकता है,तभी वे सामान्य जनों की तरह विकास की मुख्यधारा से जुड़कर समाज के निर्माण में सशक्त भूमिका निभाएंगे।उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के यशस्वी कुलपति डॉ.जसपाल सिंह संधू के कुशल नेतृत्व और प्रेरणा से विश्वविद्यालय में दिव्यांगजनों के अधिकारों के संरक्षण और सुविधाएं प्रदान करने के लिए निरंतर व्यापक स्तर पर कार्य किए जा रहे हैं।राष्ट्रीय विकलांग विमर्श शोध पीठ के निदेशक और छतीसगढ राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ.विनय कुमार पाठक ने अपने लेखकीय अभिमत में अपने प्रसिद्ध-चर्चित ग्रंथ’ विकलांग विमर्श:दशा और दिशा’ के विभिन्न पक्षों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि समाज में विकलांगों को बराबरी का अवसर उपलब्ध कराने और उनके अधिकारों के प्रति उन्हें और अंत लोगों को जागरूक करना जरूरी है ताकि विकलांगों को सामान्य नागरिकों के समान ही सामाजिक-आर्थिक विकास का लाभ प्राप्त हो सके।यूरोपीयन यूनिवर्सिटी आफ ईस्ट एण्ड वेस्ट,नीदरलैंड के पूर्व कुलपति डॉ.मोहनकांत गौतम ने अपने मुख्य अतिथि के वक्तव्य में व्यवहारिक अनुभवों के धरातल पर विकलांग विमर्श की परतें खोली और कहा कि सभी देशों में विकलांगों की समस्याएं अलग-अलग होने के बावजूद उनकी मूल समस्याएं एक जैसी ही हैं।सभी देशों में विकलांगों के साथ भेद भाव किया जाता है और उन्हें समाज से अलग करके देखा जाता है।उन्होंने विनय कुमार पाठक के ग्रंथ को एनसाइक्लोपीडिया की संज्ञा देते हुए इसे विकलांगता के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम बताया।वर्सा विश्वविद्यालय,पोलैंड के प्रोफ़ेसर डॉ.सुधांशु शुक्ला ने अपने विशिष्ट व्याख्यान में कहा कि पाठक जी का उक्त ग्रंथ एक ऐसा मुकम्मल ग्रंथ है जो शोध और समीक्षा की दृष्टि से बहुप्रतीक्षित रहा है।डॉ.पाठक को सहज ही विकलांग विमर्श का प्रणेता स्वीकारा जा सकता है।विकलांगों के प्रति नजरीये में आमूलचूल बदलाव की आवश्यकता है।विकलांगता अभिशाप नहीं है।बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय,अस्थल बोहर(रोहतक) के कुलपति डॉ.रामसजन पांडेय ने अपने विशिष्ट अतिथि के वक्तव्य में कहा कि डॉ.पाठक ने इस महत्वपूर्ण ग्रंथ का प्रणयन कर नव्यालोचन का श्रीगणेश किया है।यह ग्रंथ विकलांग-विमर्श की आचरण-संहिता के रूप में न केवल शोध-अध्येताओं को वरन् साहित्य और समाज-रूचि संपन्न संस्कारी पाठकों को भी संतृप्त करेगा।यदि विकलांग व्यक्तियों को समान अवसर तथा प्रभावी पुनर्वास की सुविधा मिले तो वे बेहतर गुणात्मक जीवन व्यतीत कर सकते हैं।अमलनेर(महाराष्ट्र) से विशेष वक्ता के रूप में जुड़े डॉ.सुरेश माहेश्वरी ने हिन्दी साहित्य में विकलांग विमर्श की अभिव्यक्ति को बखूबी उजागर किया और कहा कि डॉ.विनय कुमार पाठक के विकलांग- विमर्श पर कार्यारंभ से आज तक के दो दशकों में उनकी समर्पण सेवा-साधना की सतत सन्नद्धता और सक्रियता का मैं साक्षी रहा हूं।जमीनी स्तर पर जुड़कर ही डॉ.पाठक ने विकलांग विमर्श का प्रवर्तन किया है।मुंगेरी(छत्तीसगढ़)से विशेष वक्ता के रूप में उपस्थित डॉ.चंद्रशेखर सिंह ने विकलांग विमर्श पर अपनी काव्यमयी प्रस्तुति से डॉ.पाठक के प्रदेय पर प्रकाश डाला और कहा कि इस ग्रौथ में उन्होंने विकलांगता की परिक्रमा और हिन्दी साहित्य की समग्र विधाओं में प्रतिफलित विकलांग-चेतना की पड़ताल करके विकलांग-विमर्श के उत्कर्ष को स्पर्श दिया है।भारतीय वायुसेना में कार्यरत श्री कमलकांत वत्स, डीएवी कॉलेज, अमृतसर से डॉ.किरण खन्ना और शांति देवी आर्य महिला महाविद्यालय,दीनानगर से डॉ.पूनम महाजन ने अपने विकलांग-विमर्श पर अपने शोध-पत्रों का वाचन किया।विश्व भाषा अकादमी, भारत के अध्यक्ष मुकेश शर्मा ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में विकलांगों को जन-सुविधाओं का लाभ दिये जाने पर बल दिया।उन्होंने उम्मीद जताई कि डॉ.पाठक के इस ग्रंथ से विकलांग-चेतना की अखंड लौ प्रज्ज्वलित होगी।गुरु नानक देव विश्वविद्यालय,अमृतसर के एफडीसी-एचआरडीसी केंद्र के निदेशक डॉ.आदर्शपाल विग ने अपने समापन भाषण में दिव्यांगजनों के अधिकारों के संरक्षण पर बल देते हुए कहा कि कानूनों के लागू होने से विकलांगता के मुद्दे और विकलांगों की समस्याओं के प्रति आम लोगों का ध्यान आकृष्ट हुआ है और विकलांग व्यक्ति भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हुए हैं, पर अभी भी इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना बाकि है।उन्होंने इस आयोजन के लिए ईओसी-पीडबल्यूडी के नोडल अधिकारी व कार्यक्रम के संयोजक डॉ.सुनील कुमार के प्रयासों की सराहना की।अंत में संयोजक डॉ.सुनील कुमार ने मेहमानों, विश्वविद्यालय-प्रशासन,तकनीकी टीम और प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम की सह-संयोजक और विश्व भाषा अकादमी,पंजाब की अध्यक्ष डॉ.ज्योति गोगिया ने बड़ी ही खूबसूरती से मंच-संचालन किया।इस अंतरराष्ट्रीय वेब-संवाद में देश-विदेश के 500 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।
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