कल्याण केसरी न्यूज़ ,31 जुलाई : सचखंड श्री हरिमन्दर साहब में गल्यारे की खुदाई दौरान ज़मीन दोज इमारती ढांचा मिलने के बाद सिक्ख विद्वानों लेखकों और संस्थायों की तरफ से इस सम्बन्धित अलग अलग विचार दिए जा रहे हैं।पुरातत्व विभाव के हवाले के साथ यहाँ निर्माण की जा रही जगह पर खुदाई दौरान मिली इमारती ढांचो बारे कोई इतिहास न होने सम्बन्धित कुछ एक अख़बारों में लगीं मनघड़त खबरें को अधिकारत सोसल मीडिया पर पहल के आधार पर प्रचारते श्रोमनी समिति की प्रधान बीबी जगीर कौर का इस ढांचे प्रति ऐतिहासिक होने से इन्कारी होने साथ उस की बुंगों प्रति नियत पर सक किया जा रहा है। उस के लिए ऐसी इमारतें सिर्फ़ रेहायशी मकान हैं जिन का विरासतों के साथ कोई लेना देना नहीं। उस की तरफ से उसारी रोकनो की बात तो बार बार की जा रही है परन्तु प्राप्त ढांचे से बाहर पिल्लर बनाने से ही यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इस ढांचे को पर से कवर कर लिया जायेगा।पुरातत्व विज्ञानी ए कर तिवाड़ी का नेतृत्व वाली भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) टीम ने सम्बन्धित जगह का मुआइना किया और अमृतसर ज़िला प्रसासन को सौंपी गई। रिपोर्ट में असली दावा तो यह है कि उक्त मशहूर हुआ ढांचा विरासती अवशेश और विरासत का हिस्सा है और विरासती महत्ता को देखते इस को सुरक्षित रखा जाना चाहिए। उन को नशट करन की इजाज़त नहीं दी जा सकती, इस लिए ज़िला प्रसासन पंजाब प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों और पुरातत्व साईटें और अवशेश एक्ट, 1964 के अधीन या प्रदान की गई व्यवस्थाएं के अधीन उन की संभाल के लिए ज़रूरी कदम उठा सकता है। आशा है कि अब इस अनमोल विरासती ढांचे को एएसआई और अमृतसर प्रसासन के निरदेशें अधीन सुरक्षित रखा जायेगा।
इस ढांचे को सुरक्षित रखने के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट की तरफ से सभी जिलों के जजों को सम्पतियों के नुक्सान, फंडूँ का दुरुपयोग और धार्मिक स्थानों के सम्बन्ध में ओर मुद्दों बारे पूछताछ करन प्रति अधिकार देने के लिए 5/7/2018 और 4/11 /2019 को जारी निरदेश काफ़ी लाभदायक साबित हो सकता है। प्रसासन की तरफ से कोताही इस्तेमाल करी जाती है तो अदालत इस सम्बन्धित अपने स्तर पर भी कार्यवाही कर सकती है। ज़िला जजों की तरफ से ऐसे मामलों की ख़ुद जांच करन उपरांत हाई कोर्ट को दी जाती रिपोर्ट पर न्यायिक पक्ष पर पियाईऐल की तरह व्यवहार कर सकें की व्यवस्था मौजूद है।
मशहूर हुआ ढांचा श्री हरिमन्दर साहब के मुख्य ग्रंथी और दमदमी टकसाल के छटे प्रमुख ज्ञानी संत सिंह जी का प्रसिद्ध’ज्ञानी का बुंगा’था। जो कि महाराजा रणजीत सिंह की तरफ से तोहफ़े के तौर पर बना कर दिया गया था। इस को ‘सर्द ख़ाना ’ के नाम के साथ जाना जाता था, जो कि गुरुद्वारा कंपलैक्स में गुरुद्वारा झंडा बुंगा के साथ जुड़ा हुआ था। यह 1988 में गल्यारे की सुन्दरीकरन योजना समय इस की धार्मिक अहमीयत को मुख्य रखते इस को सुरक्षित रखने की शर्त पर मुआवज़े के बदले सरकार ने हासिल किया सी. परन्तु बाद में 1993 को यह तीन मंजिला बुंगा गिरा दिया गया। यह ढांचा उसी का भूमिगत हिस्सा है। इस के दसतावेज़ी सबूत मौजूद हैं।बुंगों के इतिहास बारे विस्तार में जा – की जगह थोड़े शबदों में बात करूँ तो यह कि श्री गुरु रामदास साहब जी ने अमृतसर सहर को वसाउण समय पर अलग अलग हुनरमन्दें को यहाँ ला कर आबाद किया। श्री दरबार साहब के आस आसपास की गलियों और बाज़ार इन हुनरों हुनरमन्दें कर कर ही जाना जाता था। जिन को श्री दरबार साहब की सुन्दरीकरन के नाम पर भविष्य में सुरक्षा की द्रिशटी के साथ सरकार की तरफ से गलियारा योजना के अंतर्गत 1988 में गिरा दिया गया। यह वही भिड़ा परन्तु ऐतिहासिक गलियों और इमारतें थे जिन की दीवार में 1984 के फ़ौजी हमले समय पर बड़ी गिनी आतंकवादी बच निकलने में कामयाब रहे थे।1988 में सरकार की तरफ से अक्वायर की गई इमारतें में से 2इमारतें बुंगा (बुर्ज) ज्ञानियों और अखाड़ा ब्रह्म पौधा को इन की धार्मिक महत्ता और सुरक्षा कारणों कर कर बरकरार रखी गई। जिन बारे जैसे सरकार की तरफ से गलियारा योजना बारे संक्षिप्त नोट में भी देखा जा सकता है। सरकार की तरफ के बाद में 1993 में बुर्ज ज्ञानियों की तीन मंज़ली इमारत को गिरा दिया गया और ज़मीन दोज़ सरदख़ाना दबा दिया गया।खालसा राज के अंतिम वाले और अंग्रेज़ों के राज के शुरू में 1849 का अंग्रेज़ों की तरफ से तैयार किया पहला नक्सा, जिस में उन दिनों के दरबार साहब और आशा के पास के नक्से ज्ञानियों के बुंगे समेत ओर बुंगे और पुरातन इमारतें को दिखाते हैं। एक इस तरह का ही नक्सा कपड़े और बने केंद्रीय सिक्ख अजायब घर में है। जिस में ज्ञानियों का बुंगा समेत अनेकों बुंगे और बछड़े दिखाऐ गए हैं।झंडे बुंगे युगों युग अटल की रोज़मर्रा की अरदास बुंगों की अहमीयत को दिखा रहा है। महान कोस अनुसार बुंगाजांबुंगह फ़ारसी का शबद है जिस के अर्थ हैं (रहने, समान रखने की जगह) जहाँ दरशन करन पहुँचे श्रद्धालु सिक्ख ठहरते वह रेहायश बुंगा है। तवारीख इस बात की गवाही भरती है कि बुंगे सिक्ख कौम की होंद हस्ती, चढ़ती कला, संगत, पंगत,संकल्प विद्या की टकसालों, संकल्प संगीत, कीर्तन और सस्तर विद्या का अभ्यास -प्रशिक्षण और सच्चखंड श्री हरिमन्दर साहब में मज़बूत किले की उचित थे। हरेक बुंगो में यात्रुयों की रेहायश और लंगर का प्रबंध था।
खालसा जन्म से ही धर्म रखा हित जूझता आया है। अठारहवीं सदी में यह बुंगे सिंहों की तरफ से गुप्त गुरमत्यों के लिए इस्तेमाल करे जाते रहे। जिस की गवाही भाई साहब भाई वीर सिंह जी अपनी कृत (सतवंत कौर) के पन्ना 225 पर भरते हैं कि —
श्री दरबार साहब जी के दरशनी दरवाज़े और अकाल बुंगे साहब के बीच जो बड़ा मैदान है,इस टिकाने पुराने समय में एक बुंगा था,जिस को तोशेख़ाने का बुंगा कहते थे। इस बुंगो की हद अकाल बुंगो के अगले मैदान को एक ऐसी सकल के देती थी कि एदे गुप्त मशवरे का दीवान लग सगे। इस करके गुरमता यहाँ होता था चार चारों तरफ़ से रास्ते बंद होते था, और दरवाजों और पहरे होते थे,अंदर केवल वह जा सकते था,जो बुलाऐ होते था,पहरेदारें को एक इस तरह का बहरा (ओहदा) मालूम होता था,जो सज्जन वह बता सगे,उस गुरमते में शामल हो सकता था। अगर न बता सगे वह अंदर नहीं जा सकता था।
मिसल राज दौरान होंद में आए ज़्यादातर बुंगों के नाम सिक्ख सरदारों, राजे महाराजों, मिसलों, इलाकों, नगरों ए नाम और प्रसिद्ध थे। मिसल काल सिक्खों की तवारीख का सब से कशटदायक समय था। जब सिक्ख कौम और असह्य अकथनीय ज़ुल्म हुए, सिक्खों को घर कमी छोड़ जंगलों में जा कर घोड़ों की गद्दियों और रहना पड़ा। बड़ा और छोटा दो सर्वनाे घटे,सिक्खों के सरों के मूल्य रखे गए,सिंहों ने जंगलों के पत्ते खा कर गुज़ारा किया परन्तु ज़ालिम आगे अधीनता न मानी।
इतिहास मुताबिक सिक्खों की गुरिल्ला युद्ध नीति से अक्या अहमद साँस अब्दाली अहलकारों से सिक्खों का स्रोत पूछा। तो उन बताया कि इन सिक्खों को जीता जागता रखने वाला अमृत सरोवर है। जहाँ से वह इशनान करके मरे भी जीव उठते हैं। उन की जिंद जान हरिमंदिर साहब और सरोवर है।
अहमद साँस अब्दाली ने बारूद के साथ हरिमंदिर साहब को उड़ा दिया और सरोवर दबा दिया। जब सिक्खों को पता लगा कि सच्चखंड में इतना कहर घट गया है। सिंहों ने सन 1762 की दीवाली मौके गुरमता किया कि दरबार साहब की फिर उसारी करवाई जाये, दरबार साहब और अमृत सरोवर की रखा लिए इस के आस के पास बुंगे बनाए जाएँ। यह ज़िम्मेदारी सिंहों ने भाई देश राज सुर सिंह वाले को सौंपी। सिक्ख सरदार हज़ारों लाखों की गठरीयों बाँधी धन दौलत हीरे जवाहरात भाई जी के आगे ढेरी करके फिर मुहिम पर चढ़ जाते। उसी साल सरदार जस्सा सिंह रामगढिया का रामगढिया बुंगा बिक्रमी साल 1819 सन भाव 1762 ई: को बनना शुरू हुहैं।
बुंगों की मज़बूती बारे डाक्टर अमरजीत कौर इब्बन कलाँ अपनी कृत (तवारीख रामगढिया) में लिखते हैं कि ’’सच्चखंड श्री हरिमंदिर साहब जी की चौकीदारी कर रहे दो पहरेदार ऊँचे मीनार सन 1984 के सर्वनाे समय जब मीनार और बम वज्जदा था तो थोड़ा सा टूटता था,अंदाज़ा नहीं कितने बम मीनारों और बजे थे,क्योंकि यहाँ आतंकवादी का मोर्चा था,वह मीनार कितने मज़बूत होंगे जिन और बम बजने साथ सिर्फ़ टेढ़ों ही उतरने ’’
इस प्रकार बुंगे पुरातन इमारत कला का नमूना और सच्चखंड श्री हरिमंदिर साहब जी की रखा लिए एक किले की नियायी थे। उस वक्त “ज्ञानियों के बुंगे को काफ़ी मकबूलियत हासिल था। पंथ की श्रोमनी संस्था दमदमी टकसाल को यह मान हासिल है कि बुंगा ज्ञानियों दमदमी टकसाल के छटे प्रमुख और सच्चखंड श्री हरिमन्दर साहब जी के मुख्य ग्रंथी ज्ञानी भाई संत सिंह जी की राष्ट्रीय विरासत थी। जिस की तामीर संतुष्ट -ऐ -पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी की तरफ से करवा कर संकल्प के प्रचार प्रसार के लिए ज्ञानी जी को भेटा किया था।
ज्ञानी संत सिंह जी के परिवार बारे बात की जाये तो इन का बड़ा ज्ञानी भाई सूरत सिंह ( दमदमी टकसाल दे चौथे प्रमुख) चन्योट सुसत झंग का निवासी था। आप जी के पिता भायी राम सिंह अच्छे गुरसिक्ख थे। भाई सूरत सिंह जी ने श्री दसम पिता तों अमृतपान किया। भाई मनी सिंह शहीद और बाबा गुरबख़श सिंह जी शहीद से गुरबानी की संथा के लिए। गुरमुखी फ़ारसी पढ़ा। अमृतसर में रह कर संकल्प का प्रचार और गुरबानी संथा करवाते रहे। बाबा गुरबख़श सिंह जी शहीद के बाद श्री हरिमन्दर साहब में कथा करते रहे। जिस कारण ज्ञानी के नाम के साथ जाने गए। ज्ञानी सूरत सिंह जी के सच्चखंड गमन के बाद उन के पुत्र भायी गुरदास सिंह जी दमदमी टकसाल के पाँचवे प्रमुख बने और श्री हरिमन्दर साहब रह कर गुरबानी के अर्थ पढ़ाने और कथा करन की सेवा करते रहे।
भाई गुरदास सिंह जी के सच्चखंड गमन के बाद उन के छोटे भाई ग्यानी संत सिंह जी को दमदमी टकसाल का छटे प्रमुख और श्री दरबार साहब के मुख्य ग्रंथी होने का मान हासिल हुहैं। गुरू ग्रंथ साहब जी के अर्थ आप के पिता ग्यानी सूरत सिंह और भाई ज्ञानी गुरदास सिंह से ग्रहण किया। पंडित निहाल सिंह जी तों संस्कृत का ज्ञान। ज्ञानी संत सिंह जी को महा कवि संतोख सिंह और कवि मेघ सिंह के विद्या उस्ताद होने का मान प्राप्त है। गुरू ग्रंथ साहब जी की कथा प्रति रसीली ज़बान और सिंहों की प्रेरणा ने दरबार साहब में मुख्य वाक्य की कथा करन की सेवा संभाली। जो जो मर्यादा भाई मनी सिंह जी के बाद में टूट गए वह सब भाई संत सिंह ने फिर लागू किये। श्री दरबार साहब की परिक्रमा की सेवा हाथों करते, कबूतरों की बीठ अपने हाथों उठाते, गिरे केस इकठ्ठा करके ससकार करते, नियम के इतने पके थे कि एक दिन आप जी का पोता चढ़ाई कर गया तो उन का संस्कार कर कर फिर भी कथा का नियम निभाया।
इसी तरह एक बार महाराजा रणजीत सिंह आप जी के नियम की परीक्षा लेनी चाही। उन अपने नौकर रामबाग से भेजे कि मेरे तरफ से कथा की विनती कर कर आओ। उन ज्ञानी संत सिंह जी को जा विनती की। ज्ञानी जी ने उन को आदर के साथ बिठा लिया। थोड़े समय बाद दो ओर नौकर आ गए। ज्ञानी उन सब को साथ ले कर श्री दरबार साहब कथा करन चले गए। उपरांत आप जी बुंगो में आने बैठे। इतने को महाराजा साहब पहुँच गए और कथा का नियम न त्यागने के लिए बहुत प्रसन्नता के साथ उन का आदर किया।कहते एक बार गोमरखान नामी गुरसिक्ख जो ज्ञानी जी का श्रद्धालु था,उस का जवान पुत्र चढ़ायी कर गया। उस ने बच्चे को जीवित करन की ज्ञानी जी को फ़रियाद की। संत जी ने कहा कहो तो शरीर त्याग देते हैं, तुम्हारे घर तुम्हारा पुत्र जिय पड़ेगा। वैसे हम उसे जिला नहीं सकते। कहा – भोल्या कोई परमेशर का शरीक है? अगर धीरज रखो। दसमासी तेरे घर पुत्र जन्म लेगा। निश्चय रख। तो उस के घर दसवें महीने पुत्र ने जन्म लिया।
ज्ञानी संत सिंह जी तेग़ के भी धनी थे। इतिहास में जैसे आता है कि महाराजा रणजीत सिंह झंग की लड़ाई में ज़ख़्मी हो कर खाई में गिर पड़े। जिस को संत जी की तरफ से पीठ ऊपर उठा कर किले में लाया गया। जान बचाने के इस अहसान को महाराजा ने सारी उम्र याद रखा। लाहौर दरबार और होर सिंह सरदारों में आप जी इज्जत अधिक गई। कँवर नौनेहाल सिंह का विद्या उस्ताद रहे। दरबार साहब जी का काम आप की मार्फत होने लग पड़ा। आप ने महाराजा को प्रेर कर सच्चखंड श्री दरबार साहब पर सोने की सेवा करवाई। जिस बाबत श्री दरबार साहब के पूर्व उतर वाले दरवाज़े पर यह उकेरे मिलते हैं। महाराजा ने बाज़ार माँ सेवा में बंगा ज्ञानियों रेहायश के लिए बना कर दिया जो भाई संत सिंह जी की विद्वत्ता – महिमा और गुणों की याद दिलाता है। जिस को हिंद हकूमत ने 1993 में गिरा दिया।सिक्खों की तारीख़ में बुंगों ने बड़ा बड़ा खराब कर अदा किया है। इन में हमारी अमीर विरासत छिपी हुई है। इन हवालों के साथ हम कह सकते हैं कि गल्यारे की खुदाई दौरान मिला ढांचा बुंगा ज्ञानियों का है। इस बुंगो की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को देखते हुए इस की संभाल की जानी चाहिए हो सके तो इस को दमदमी टकसाल के हवाले कर दिया जाना चाहिए। ( पिरो: सरचांद सिंह)