कल्याण केसरी न्यूज़ ,21 फरवरी : कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो, न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ कनाडा (एनडीपी) के खालिस्तान समर्थक नेता जगमीत सिंह और सिख फॉर जस्टिस के गुर पटवंत सिंह पन्नू के ट्रिपल अलायंस और शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के प्रति दोहरे मापदंड उजागर हो गए हैं। इन तीनों ने राजनीतिक स्वार्थ के लिए भारत के अंदरूनी मामलों में अस्वीकार्य रूप से हस्तक्षेप करके दिल्ली किसान आंदोलन का समर्थन किया है।
परन्तु दूसरे तरफ़ कैनेडा की राजधानी ओटावा में ट्रक चालकों की तरफ से सरकार ख़िलाफ़ चलाए जा रहे आंदोलन का एकसुरता के साथ सख़्त विरोध किया जा रहा है। ऐन डी. ए. नेता जगजीत सिंह के कहने पर जस्टिन ट्रूडो ने किसान आंदोलन के दौरान वीडियो के जरिए अपना समर्थन और एकजुटता जाहिर कर किसानों को भड़काने की कोशिश की. आज कनाडा की राजधानी ओटावा ने एक और सिंघू बॉर्डर बना है। भारत को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाते रहे कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ने ओटावा में ट्रक चालकों पर आपात कार्रवाई का आह्वान किया है।
पिछले महीने के अंत में जारी किए गए कोविड वैकसीनेशन बारे जारी सख़्त नियमों के साथ प्रभावित होते हज़ारों ट्रक चालकों को नौकरियाँ से हाथ धोने पड़े और नयी शरतें और पाबन्दी क़रीब 15 से 20 हज़ार ओर ट्रक ड्राइवरों को अक्षम कर सकते हैं। कनाडा में परिवहन व्यवसाय सिख समुदाय के पास है और ट्रक चालकों की भारी संख्या भी सिक्ख हैं। एनडीपी ने नियमों का विरोध कर रहे हजारों ट्रक ड्राइवरों और उनके समर्थन में कनाडा यूनिटी के निमंत्रण पर ओटावा जाने वाले “इंडिपेंडेंस ट्रक कारवां” के सदस्यों को निशाना बनाया है। जगजीत सिंह के ट्रूडो को पूर्ण समर्थन देने को लेकर सिख समुदाय में भारी आक्रोश और निराशा है। सिंघू बॉर्डर और ओटावा आंदोलनों प्रति अपनाए गए अलग अलग मापदंड से उनकी राजनीतिक छवि धूमिल हो रही है। और कनाडा के लोगों में ट्रूडो सरकार, लिबरल पार्टी और एनडीपी का राजनैतिक ग्राफ तेज़ी के साथ गिर रहा है। ओटावा का आंदोलन दुनिया भर के लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहा है। स्थिति और प्रदर्शनकारियों के कड़े विरोध को देखते हुए प्रशासन ने अघोषित नियमों के तहत आपातकाल घोषित कर दिया है। न केवल सुरक्षा कड़ी कर दी गई है बल्कि प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करने की धमकी भी दी जा रही है. इसके विपरीत, दिल्ली में एक साल के किसान आंदोलन के बावज़ूद भारत सरकार ने धमकी और गिरफ़्तारियाँ करनी तो दूर प्रदर्शनकारियों को पीने के लिए साफ़ पानी और शौचालय की सुविधा प्रदान की। फिर भी ट्रूडो और खालिस्तान समर्थक नेता जगमीत सिंह ने कभी भी सिख फॉर जस्टिस के नेता गुरपतवंत पन्नू की चरमपंथी तत्वों की सेवा करके किसान आंदोलन में अशांति फैलाते हुए को नहीं देखा है।
जगमीत सिंह जिन्होंने कनाडा के प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो को भारत में हिंसा की निंदा करने और शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार का बचाव करने के लिए ट्वीट किया, उन्होंने दूसरों को बोलने की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार सिखाया, लेकिन ओटावा फ्रंट के खिलाफ उनका उपदेश उनके कहनी और कथनी में अंत्र को दर्शाता है। सवाल यह उठता है कि जगजीत सिंह, जिन्होंने हमेशा दूसरों से दिल्ली के प्रदर्शनकारियों की मदद के लिए आगे आने का आग्रह किया है, अपने ही साँढू भाई जोधवीर सिंह धालीवाल से नफरत करने लगे हैं, जिन्होंने ओटावा में स्वतंत्रता रैली का आयोजन करने वाले समूह को 13,000 डालर का दान दिया था। जगमीत सिंह ने भारत सरकार से दिल्ली में सिंघू सीमा पर किसानों के साथ खुलकर बात करने के लिए कहा था, परन्तु इस के विपरीत वह कैनेडा के आंदोलनकारियों की समस्याएँ को सुलझाने के लिए अपनी, सेवाओं पेस करन की जगह कैनेडा में अपनी राजनैतिक सुरक्षा कायम रखने के ख़ातिर ट्रूडो सरकार की ट्रक चालकों प्रति दमनकारी नीतियाँ का साथ दे रहा है। भारत सरकार की तरफ से किसानों के साथ मसला सुलझाने को ले कर हर हफ़्ते बातचीत की जाती रही परन्तु जगमीत सिंह, जस्टिन ट्रूडो या सरकार की तरफ से ओटावा के प्रदर्शनकारियों को न तो भरोसे में लिया जा रहा है, न ही उन की समस्याएँ को सुना जा रहा है और न ही इस मामले को सही तरीक़े साथ हल (हैंडल) किया जा रहा है। बल्कि ट्रक ड्राइवरों पर नकेल कसने की सरकार की नीति का समर्थन कर रहे हैं।
भारत सरकार हर हफ़्ते किसानों के साथ मुद्दे को सुलझाने के लिए बातचीत करती रही है लेकिन न तो जगमीत सिंह, जस्टिन ट्रूडो और न ही सरकार ओटावा प्रदर्शनकारियों को विश्वास में ले रही है और न ही उनकी समस्या सुनी जा रही है। इस मामले को ठीक से संभाला जा रहा है। उन्हें पानी और शौचालय जैसी कोई सुविधा भी नहीं दी जा रही है। ओटावा धरना प्रदर्शन में शामिल हजारों ट्रकों में हजारों परिवार की महिलाओं और बच्चों की ठंड के बावज़ूद बड़ी संख्या में कठिन परिस्थितियों से निपटने की जगमीत सिंह को दर्द महसूस नहीं होता है, जो प्रदर्शनकारियों के लिए रोजी-रोटी या सिर्फ विरोध की बात नहीं है। बल्कि उनके लिए जीवन-मरण का मामला है। सीमा पार करने वाले क़रीब 90 फीसदी ट्रक चालकों का टीकाकरण किया जा चुका है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रक ड्राइवरों के लिए अनिवार्य टीकाकरण टीकाकरण दरों को बढ़ाने का एक प्रयास है, जो पहले से ही चुनौतीपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला को और प्रभावित करेगा। इसलिए हजारों प्रदर्शनकारी विरोध करने के लिए ओटावा में सड़कों पर उतर आए हैं। जगमीत सिंह और ट्रूडो को यह नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के कल्याण के लिए लाए किसानों को पसंद तीन कृषि कानूनों को निरस्त करके अपने लोगों के प्रति सहानुभूति दिखाई है, ट्रूडो और जगमीत सिंह, ओटावा में लड़ रहे मेहनती ट्रक चालकों के मसले को सुलझाने के लिए कोई यत्न करेगा भी? अगर नहीं तो यह माना जायेगा कि उन के लिए ’अपने घर लगे तो आग,दूसरे के घर लगे तो तमाशा ’ वाली बात उचित होगी।क्या कोई इस समस्या का समाधान निकालने की कोशिश करेगा? यदि नहीं, तो उनके लिए ’अपने घर लगे तो आग,दूसरे के घर लगे तो बसंतर’ वाली बात होगी।