कल्याण केसरी न्यूज़ ,27 अप्रैल : सिखों के नौवें गुरू श्री गुरु तेग़ बहादुर जी के 400 साला प्रकाश पर्व को समर्पित साल भर चलाए गए समागमों ने एक बार फिर मुग़ल बादशाह औरंगजेब की तरफ से सिक्खों और हिंदुयों की की गई नसलकुशी की तरफ दुनिया का ध्यान खिंचा है। इस नसलकुशी और जबरन धर्म परिवर्तन विरुद्ध खडे होने के लिए श्री गुरु तेग़ बहादुर साहब जी का दिली के चाँदनी चौक में जनतक तौर पर सिर कलम किया गया था।
परन्तु अफ़सोस कि सोनिया गांधी का नेतृत्व वाली कांग्रेस (आई) समेत कुछ लोगों के लिए यह सब केवल एक प्रापेगंडा है। कांग्रेस के एक वक्ता ने यह मामला संसद में उठानो की धमकी दी है। संसद के अंदर और बाहर राष्ट्रीय स्तर पर बहस होती है तो मैं उस का स्वागत करूँगा। मैं सोनिया गांधी और राहुल गांधी को बहस में निजी तौर पर हिस्सा लेने की विनती करता हूँ। क्योंकि ऐतिहासिक हकीकत यह है कि श्री गुरु तेग़ बहादुर जी की तरफ से हिंदुयों के जबरन धर्म परिवर्तन और नसलकुशी प्रति किये गए विरोध कारण बेशक्क हिंदुयों पर कहर कुछ रुक गया परन्तु इस के बदले में सिक्खों के विरुद्ध मुग़ल साम्राज्य के जबर ज़ुल्म में इजाफा हुआ। श्री गुरू तेग़ बहादुर जी दे दो पोतों ( छोटे साहिबज़ादों) को जीवित ही सरहन्द में नींवों में चिनाई कर दिया गया। कई हज़ार सिक्खों को बेरहमी के साथ कत्ल किया गया था। इतिहास में ऐसी घिनौनी नसलकुशी का ओर कोई समानता नहीं है।
नसलकुशी का अर्थ है किसी ख़ास आबादी या इसके एक हिस्से का योजनाबद्ध विनाश करना। नसलकुशी के अपराध की रोकथाम और सजा के बारे संयुक्त रास्ट्र की कनवैन्नशन नसलकुशी को समूह के सदस्यों को मार कर या किसी राशटरी, नसली, या धार्मिक समूह को पूरी तरह या अंशक तौर पर तबाह करन के इरादो के साथ हमला करना, या गंभीर शारीरिक या मानसिक नुक्सान पहुँचाने के तौर पर परिभाशित करती है।
मुग़ल हकूमतों के हाथों सिक्खों और हिंदुयों की होंद को खतरे का सामना करना पड़ा। सिक्ख गुरूयों की सारी उत्तराधिकारी लड़ी को तबाह कर दिया गया था। सिक्खों के सरों पर मूल्य लगाए गए। उन को आरों के साथ चीरा काटा गया, देगों में उबाल्या, बाँध कर भूना और जीवित जला दिया गया। श्री हरमिन्दर साहब अमृतसर को पके तौर पर तबाह करन की कोशिश की गई। सिक्खों के त्योहार मनाने पर पाबंदी लगा दी गई। लोगों को उन को भोजन या आसरा देने से मना करा गया था। सिक्खों को जंगलों और रेगिस्तानों की तरफ जाना पड़ा। इस मौके दो सर्वनाे सिक्ख सिमृतियों में अविस्मरणीय हैं, एक छोटा सर्वनाश काहनूंवान, गुरदासपुर में 1746 को घटा जिस में 7हज़ार सिक्खों को घेर कर बेरहमी के साथ शहीद किया गया और पकड़े गए 7हज़ार सिक्खों को लाहौर लिजा कर शहीद किया गया। इसी तरह अहमद शाह अब्दाली की फ़ौजों की तरफ से फरवरी 1762 दौरान सिक्खों का सुराग मिटाने की मंशा के साथ पीछा करते मलेरकोटला के पास गाँव कुप्प रोहीड़ा में 35 हज़ार के करीब सिक्खों को शहीद किया गया जो कि उस समय सिक्खों की आबादी पक्ष से यह 80 प्रतिशत थी। यह सब सिक्ख पहचान को हमेशा के लिए ख़त्म करन के लिए था। इस तरह, सिक्खों को मुग़लों के हाथों बेमिसाल नसलकुशी हिंसा का सामना करना प्या, जो दुनिया दे किसी भी हिस्से में अणदेखी है। यह हिंसा सिक्ख अरदास में हर दिन हर समय पुकारा जाता है।
’’जिन्हां सिंघां सिंघणियां ने धरम हेत सीस दित्ते, बन्द बन्द कटाए, खोपरियां लुहाईआं, चरखियां ते चड़े, आर्यां नाल चिराए गए, गुरदवार्यां दी सेवा लई कुरबानियां कीतियां, धरम नहीं हार्या, सिक्खी केसां सुआसां नाल निबाही….’’
संयुक्त रास्ट्र (यू.ऐन.) ने नसलकुशी को मानवीय अधिकारों की सब से बड़ी उल्लंघन और मानवता विरुद्ध घातक अपराध माना है। परन्तु संयुक्त रास्ट्र सिक्खों जैसे ग़ैर -अबराहमिक धर्मों विरुद्ध की गई नसलकुशी को मान्यता देने में असफल रहा है। इस लिए मुग़लों हाथों हिंदु -सिक्खों की नसलकुशी को मान्यता देने के लिए संयुक्त रास्ट्र के पास मुद्दा उठानो की ज़रूरत है में संयुक्त रास्ट्र को सिक्ख नसलकुशी को मान्यता देने और गुरू तेग़ बहादुर जी के शहीदी दिहाड़े को’नसलकुशी के पीडित हिंदु और सिक्खों की याद में यादगार दिवस के तौर पर मनाने की विनती करन के लिए सरकार को अपनी पटीशन का समर्थन करन के लिए सभी का समर्थन मंगांगा।आज़ादी, सकती की एकाग्रता ; उन कानूनों को के पास करना जो लोगों के साथ उन की पहचान के आधार पर भेदभाव करते हैं और सकती द्वारा दूसरे पर शासन का प्रतीक हैं।नसलकुशी को रोका जा सकता है यदि सकती द्वारा शासन को लीडरशिप द्वारा चुनौती दी जाये, जैसे कि गुरू तेग़ बहादुर द्वारा किया गया था। शंस्थागत तौर’पर, न्याय तक पहुँच को यकीनी बना कर ताकत द्वारा शासन को असफल किया जा सकता है। जवाबदेह और समावेश संस्थायों की स्थापना, कानून के शासन को उतशाहत करना, सभी रूपों में भ्रिशटाचार का ख़ात्मा, सभी पद्धरें पर जवाबदेह, संमलित, भागीदार और प्रतिनिधि फ़ैसले लेने को उतशाहत करना, जानकारी तक जनतक पहुँच को यकीनी बनाना, आज़ादी के बुनियाद की रक्षा करना ; हिंसा और नफ़रत वाले भाशण की जांच और भेदभाव रहित कानून बनाना। नसलकुशी की शुरूआती रोकथाम के लिए असमानतायों को ख़त्म करन और आपसी सम्मान की सांझी भावना को उतशाहत करना ज़रूरी तौर पर अच्छे शासन के लिए एक चुनौती है।
नसलकुशी धर्म, विचारधारा और भुगोल के साथ है। कोई भी समाज के पास इसके विरुद्ध में चट्टान मौजूद नहीं है। नसलकुशी, ग्रह के किसी भी हिस्से में, आधुनिक समय में या पुरातनता में, मानव जाति के विरुद्ध एक अपराध है। यह सभी समाजों की सामुहिक विशव -व्यापक ज़िम्मेदारी है कि इतिहास से कोई भी नसलकुशियों की याद को मिटने दे, क्योंकि हरेक नसलकुशी से सीखे गए सबक धरती के किसी ओर कोनो में इस के दुहराउण को रोकनो के लिए बराबर अंतरराशटरी महत्व रखते हैं। इस लिए, यह ज़रूरी है कि सत्रहवीं और अठारहवीं सदी में सिक्खों की नसलकुशी को मानवता के बड़े भले ली संयुक्त रास्ट्र द्वारा मान्यता दी जाये और इस नसलकुशी बारे जानकारी संयुक्त रास्ट्र के सभी मैंबर देशों में फैलायी जाये। ( डा: जगमोहन सिंह राजू आईएएस (पूर्व) 9629778899)