किसानी, मनीषा का बलात्कार और दलितों के वज़ीफ़े के मामले बने राजनीति का खेल

कल्याण केसरी न्यूज़,10 अक्टूबर :  -कांग्रेस,अकाली,भाजपा और आम आदमी पार्टी दिखा रही अपना जोर -न मिला मनीषा को इन्साफ, न केंद्र ने लिया बिल वापस और न ही बना कुछ स्कालरशिप घोटाले का पिछले कुछ दिनों से एक अलग तरह की राजनीति देश में देखने को मिल रही है। हरेक पार्टी अपने आप को लोगों का हिमायती बताते हुए विरोध प्रदर्शन के रूप में धरने, बंद की काल, ट्रैक्टर रैलियाँ और ओर कई ढंग अपना कर लोगों को यह दिखाने की कोशिश कर रही हैं कि वह लोगों के लिए कुछ भी कर सकतीं हैं परंतु साफ़ साफ़ एक बात दिखाई दे रही है कि यह मुद्दे सिर्फ़ और सिर्फ़ बातों  तक ही सीमित रह गए हैं। केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ आज से काफ़ी दिन पहले तीन किसानी के बिलों को ले कर विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं। कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी ने पंजाब में ट्रैक्टर रैलियाँ की, अकाली दल ने रोष प्रदर्शन किये और आम आदमी पार्टी की तरफ से भी विरोध प्रदर्शन किये गए परंतु हुआ कुछ नहीं। भाजपा की नरिन्दर मोदी का नेतृत्व वाली सरकार ने अपने मन की की और बिल को पास करवा लिया और राष्ट्रपति की तरफ से हस्ताक्षर भी करवा कर बिल को कानून बना दिया। इस के बाद बात की जाये हाथरस में हुए एक लड़की के साथ बलात्कार और दंरिदंगी भरे सलूक के बाद मरने वाली मनीषा के मामले की तो उस मामले का भी हाल कुछ इस तरह का ही दिखाई दे रहा है। लड़की किसी भी जाति के साथ सम्बन्ध रखती हो परन्तु घटना की जितनी भी निंदा की जाये कम है। अलग -अलग पार्टियों की तरफ से इस मुद्दे को ले कर भी रोष प्रदर्शन किये गए हैं, बंद भी किये गए जाम लगाए गए परंतु यू.पी. की सरकार टस से मस नहीं हुई बल्कि मामले को ओर ही रंग रूप देने की कोशिश की गई है, बात कुल मिला कर कही जाये तो मनीषा को इन्साफ तो क्या मिलना था परंतु राजनैतिक पार्टियाँ की तरफ से अपनी, राजनैतिक रोटियाँ सेकी गई और मनीषा को इन्साफ की बजाय पिड़ा और ज़लालत ही मिली है। इस के बाद बात करें स्कालरशिप घोटाले की। इस में भी जिसकी सरकार उसकी ही चलती दिखाई दे रही है। करोड़ों का घोटाला हुआ, दलितों के बच्चों को मिलने वाली सुविधा को सम्बन्धित विभागों के मंत्री और आला अधिकारियों ने छीना। इसका खामियाजा दलित बच्चों को भुगतना भी पड़ा, उन को तो स्कूल और कालेजों की तरफ से खराब कर रोल नंबर न जारी करने और पेपरों में न बैठने की धमकियां दे कर बच्चों को तंग परेशान किया गया। बच्चे बहुत परेशान भी हुए, उन को जहाँ पढ़ाई पक्ष से नुक्सान हुआ वहां मानसिक तौर पर परेशान भी हुए। उन मामलों में जो होना चाहिए था वह न हो कर राजनैतिक पार्टियाँ चाहे वह भाजपा हो, अकाली दल हो, कांग्रेस हो, आम आदमी पार्टी हो अपने आप को आगे दिखाने की होड़ में लगे हुए हैं जबकि लोगों को मिला कुछ नहीं। आए दिन कभी कोई पार्टी बंद की काल दे देती है, कभी कोई पार्टी किसानों के नाम पर रैलियाँ, ट्रैक्टर रैलियाँ करती है, दूसरी पार्टी उसके विरोध में या उसका जवाब देने के लिए ओर बड़े स्तर पर अपने तरफ से रैलियाँ करती है। इस सब की परेशानी किस को होती है घुमा फिरा कर आम लोगों को। फ़ायदा क्या होता है…? – – – ज़ीरो। पिछले लगभग 1महीने से यह सब कुछ चल रहा है। हाँ यदि सभी पार्टियाँ लोगों की हिमायती हैं तो कुछ सरकारें झुके और कुछ विरोधी पार्टियाँ। कोई बच्चा नहीं है और ना ही सरकारें, ना ही विरोधी पार्टियाँ और ना ही लोग। सब को पता है कि गलत क्या है और सही क्या। यदि सरकारों की तरफ से गलत हो गया है तो उसको ठीक कर लेना चाहिए, उन का कुछ घटने नहीं लगा। विरोधी पार्टियाँ भी मान मर्यादा को ध्यान में रखते हुए अपनी बात लोक सभा, राज्य सभा, विधानसभावों  में रखे और सरकारें भी उन की बात को समझ कर लोगों के हित में काम करने जिससे किसानी, मनीषा के दोषियों को सख़्त सज़ाएं और दलितों के बच्चों को इन्साफ मिल सकता है। कहते हैं कि उम्मीद पर ही दुनिया कायम है और वह भी दिन कभी आऐंगे यह परमात्मा ही जाने। 

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